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सुब्ह उफ़ुक़ है शाम शिफ़क़ है,
देख ले उसको, एक झलक है.
बात में तेरी सच की औसत,
दाल में जैसे, यार नमक है.
आए कहाँ से हो तुम ज़ाहिद?
आंखें फटी हैं, चेहरा फ़क़ है.
उसकी राम कहानी जैसी,
बे पर की ये ,सैर ए फ़लक है.
माल ग़नीमत ज़ाहिद खाए,
उसकी जन्नत एक नरक है.
काविश काविश, हासिल हासिल,
दो पाटों में जान बहक़ है.
धर्मों का पंडाल है झूमा,
भक्ति की दुन्या, मादक है.
हिंद है पाकिस्तान नहीं है,
बोल बहादर जो भी हक़ है.
कुफ़्र ओ ईमान, टेढ़ी गलियां,
सच्चाई की, सीध सड़क है.
फ़ितरी बातें, एन सहीह हैं,
माफ़ौक़ुल फ़ितरत पर शक है.
कितनी उबाऊ हक़ की बातें,
मुंकिर उफ़! ये किस की झक है.
तिज लालिमा *शिफ़क़=शाम की क्षितिज लालिमा *काविश=जतन
*फितरी=लौकिक *माफौकुल=अलौकिक उफुक़=प्रातः
،صبح اُفق ہے، شام شِفق ہے
دیکھ لےاُسکو، ایک جَھلک ہے٠
،بات میں تیرے سچ کی اَوسط؟
دال میں جیسے یار نمک ہے٠
،آئے کہاں سے، تم ہو زاہد
آنکھ پھٹی ہے، چہرہ فَق ہے٠
،اُسکی رام کہانی جیسے
سیر فلک ہے. بے پر کی وہ
مالِ غنیمت غازی کھاۓ؟
اُسکی جنّت ایک نرک ہے٠
کاوش کاوش؟ حاصل حاصل؟؟
دو پاٹوں میں جان بحق٠
،دھرموں کا پنڈال ہے جھوما
بَھگتی کی دُنیا مادک ہے٠
،ہند ہے، پاکستان نہیں ہے
بول بہادر جو بھی حق ہے٠
،کُفر و ایماں سکری گلیاں،
سچائی کی سیدہ سڑک ہے٠
،فِطری باتیں عین صحیح ہیں
مافوق الفطرت پہ شک ہے٠
،کتنی اُباؤ ایش کی گاتھا
منکر اُف ! یہ کیسی جھک ہے٠
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