Saturday, May 5, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 50



50

आबला पाई है, दूरी है बहुत,
है मुहिम दिल की, ज़रूरी है बहुत.

कुन कहा तूने, हुवा दन से वजूद,
दुन्या ये तेरी, अधूरी है बहुत.

रहनुमा अपनी शुजाअत में निखर,
निस्फ़ मर्दों की हुज़ूरी है बहुत.

देवताओं की पनाहें बेहतर,
वह खुदा, नारी ओ नूरी है बहुत.

तेरे इन ताज़ा हिजाबों की क़सम,
तेरा यह जलवा, शुऊरी है बहुत.

इम्तेहां तुम हो, नतीजा है वजूद,
तुम को हल करना ज़रूरी है बहुत.

***

،آبلہ پائی ہے، دوری ہے بہت 
ہے مُہم دل کی، ضروری ہے بہت٠ 

،رہنُما اپنی شُجاعت میں نکھر 
نِصف مردوں کی حُضوری ہے بہت٠

،دیوتاؤں کی پناہیں بہتر 
وہ خدا نوری و ناری ہے بہت٠

،تیرے اِن تازہ حِجابوں کی قسم 
تیرا یہ جلوہ شعوری ہے بہت٠

،اِمتحان تم ہو نتیجہ ہے وجود 
تم کو حل کرنا ضروری ہے بہت٠

1 comment:

  1. क्या कहूँ शब्द नहीं हैं मेरे शब्द कोश में। अप्रतिम रचना !

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