Monday, May 21, 2018

65 तुम जाने किस युग के ज्ञानी, साथ मेरे क्यूं आए हो,



65

तुम जाने किस युग के ज्ञानी, साथ मेरे क्यूं आए हो,
सर का भेद न समझे सर, दाढ़ी चोटी लटकाए हो.

चमत्कार चतुराई है उसकी, तुम जैसा इंसान है वह,
करके महिमा मंडित उसको, तुम काहे बौराए हो.

माथा टेकू मस्तक वालो, यह भी कोई शैली है,
धोती ऊपर टोपी नीचे, इतना शीश नवाए हो.

मुझ तक अल्लह यार है मेरा, मेरे संग संग रहता है,
तुम तक अल्लह एक पहेली, बूझे और बुझाए हो.

चाहत की नगरी वालो, कुछ थोड़ा सा बदलाव करो,
तुम उसके दिल में बस जाओ, दिल में जिसे बसाए हो.

यह चिंतन, यह शोधन मेरे, मेरे ही उदगार नहीं,
अपने मन में इनके जैसा, तुम भी कहीं छुपाए हो.

चाँद, सितारे, सूरज, पर्बत, ज़ैतून व् इन्जीरों१ की,
मौला! 'मुंकिर' समझ न पाया, इनकी क़समें खाए हो.

१-कुरान में अल्लाह इन चीज़ों की क़समें खा खा कर अपनी बातों का यकीन दिलाता है.

،تم جانے کس یُگ کے ساتھی، ساتھ میرے کیوں آۓ ہو 
سر کا بھید نہیں سمجھے، سر میں داڑھی لٹکاۓ ہو٠ 

،چَمتکار چتُرائی ہے اُسکی، تم جیسا انسان ہے وہ 
کر کے مہیما منڈِٹ اُسکو، تم کا ہے بو ر اۓ ہو٠ 

ماتھا ٹیکو سجدے والو یہ بھی کوئی شیلی ہے؟ 
دھوتی اُوپر، ٹوپی نیچے، اِتنا شیش نواۓ ہو٠ 

،مجھ تک الله یار ہے میرا، سنگ سنگ میرے رہتا ہے 
تم تک الله ایک پہیلی، بوجھے اور بُجھاۓ ہو٠ 

،چاہت کی نگری والو کُچہ تھوڑا سا بدلاؤ کرو 
تم اُسکے دل میں بس جاؤ، دل میں جِسے بساۓ ہو٠ 

،یہ چِنتن، یہ منتھن میرا، میرے ہی اُدگار نہیں

اسکے جیسا من میں اپنے، تم کہیں چھپاۓ ہو

،چاند ستارے سورج پربت، زیتون و انجیروں کی 
مولا منکر سمجھ نہ پایا ، انکی قسمیں کھے ہو٠ 

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