Thursday, May 17, 2018

61 उस तरफ़ फिर बद रवी की, इन्तहा ले जाएगी



61

उस तरफ़ फिर बद रवी की, इन्तहा ले जाएगी,
फिर घुटन कोई किसी को, करबला ले जायगी.

ज़ुल्म से सिरजी ये दौलत, दस गुना ले जाएगी,
लूट कर फ़ानी ने रक्खा है, फ़ना ले जाएगी.

है तआक़ुब में ये दुन्या, मेरे नव ईजाद के,
मैं उठाऊंगा क़दम, तो नक़्श ए पा ले जाएगी.

तिफ़्ल के मानिंद, अगर घुटने के बल चलते रहे,
ये जवानी वक़्त की आँधी उड़ा ले जाएगी.

बा हुनर ने चाँद तारों पर बनाई है पनाह,
मुन्तज़िर वह हैं, उन्हें उन की दुआ ले जाएगी.

*

बुल हवस को मौत तक, हिर्स ओ हवा ले जाएगी,
जश्न तक हमको, क़िनाअत की अदा ले जाएगी.

बद ख़बर अख़बार का, पूरा सफ़ह ले जाएगा,
नेक ख़बरी को बलाए, हाशिया ले जाएगी.

बाँट दूँगा बुख़्ल  अपने ख़ुद ग़रज़ रिश्तों को मैं,
बाद इसके जो बचेगा, दिल रुबा ले जाएगी.

रंज ओ गम, दर्द ओ अलम, सोज़ ओ ख़लिश हुज़्न ओ मलाल,
"ज़िन्दगी हम से जो रूठेगी, तो क्या ले जाएगी".

मेरा हिस्सा ना मुरादी का, मेरे सर पे रखो,
अपना हिस्सा ऐश का, वह बे वफ़ा ले जाएगी.

ग़ैरत मुंकिर को मत, काँधा लगा पुरसाने हाल,
क़ब्र तक ढो के उसे, उसकी अना ले जाएगी.

*बद रवी =दूर व्योहार *तआक़ुब=पीछा करना *तिफ्ल=बच्चा *तमअ=लालच
*बुल हवस =लोलुपता *हिर्स ओ हवा =आकाँछा *किनाअत=संतोष *बुख्ल=कंजूसी *अना=गैरत

،اُس طرف پھر بدَ روی کی اِنتہا لے جاۓگی 
پھر گُھٹن کوئی، کسی کو کربلہ لے جاۓگی٠ 

،ظُلم سے سِرجی یہ دولت، دس گُنہ لے جاۓگی
لوٹ کر فانی نے رکّھا ہے، فنا لے جاۓگی٠

،بُوالہوس کو موت تک، حِرص و ہوا لے جاۓگی
جشن تک مُجھکو، قناعت کی ادا لے جاۓگی٠

،طِفل کے مانند اگر، گُھٹنوں کے بل چلتے رہے 
یہ جوانی وقت کی آندھی، اُڑا لے جاۓگی٠

،با ہُنر نے چاند تاروں پر بنائی ہے پناہ 
مُنتظر وہ ہیں، اُنھیں کوئی دُعا لے جاۓگی٠

،ساری خِلقت کی امانت دار ہے میری طبع
ائے طماع تجھ پر نظر ہے، کُچھ چُرا لے جاۓگی٠

،بَد خبر اخبار کا، پورا صفحہ لے جاےگا 
نیک خبروں کو بلانے حاشیہ لے جاۓگی٠

،بانٹ دونگا بخل اپنے، خود غرض رشتوں کو میں
بعد اِسکے جو بچیگا ، دل رُبا لے جاۓگی٠

،میرا حصّہ نا مُرادی کا، میرے سر پر رکھو 
اپنا حصّہ عیش کا، وہ بے وفا لے جاۓگی٠

،رنج وغم، درد والم، سوزو خلش، حزن و ملال 
زندگی ہم سے، جو روٹھے گی، تو کیا لے جاۓگی٠

،غیرتِ منکر کو مت کاندھا لگا، پُرسانِ حال 
قبر تک ڈھو کے اُسے، اُسکی انا لے جاۓگی٠

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (19-05-2017) को " बेवकूफ होशियारों में शामिल" (चर्चा अंक-2965) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ऐ मुलहिद ज़रा सी हम्दो-सना रखते,
    क़ब्र तक जाने की फिर तमन्ना रखते..,
    वसीयत न मुसद्दिक़ न कोई मुरब्बी,
    ढोने वाले तिरी मैय्यत को कहाँ रखते..,


    धरम अनादर मति करो होत जहाँ अवसान |
    ताहि कंधे पौढ़त सो पहुँचे रे समसान || १ ||
    भावार्थ : -- मनुष्य को धर्म का अनादर नहीं करना चाहिए, जीवन रूपी संध्या के अवसान होने पर धर्म के कंधे उठकर वह श्मशान पहुंचता है |

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  3. आपकी गजल पढकर बहुत मज़ा आया सर.
    एक एक शेर लाजवाब हैं.

    आपकी प्रोफाइल में आपके बारे में पढ़ा पढकर बहुत सकूं मिला.

    मै भी गजल लिखने की हिम्मत कर लेता हूँ कभी कभी. आपसे बहुत कुछ सिखने को मिल सकता है.
    आप मेरे लेखन को एक बार देखिये, आपका सुझाव सर आँखों पर रहेगा.
    मेरे ब्लॉग का लिंक --->
    हाथ पकडती है और कहती है ये बाब ना रख (गजल 4)

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