Saturday, May 26, 2018

68 मन को भेदे, भय से गूथे, विश्वासों का जाल,



68

मन को भेदे, भय से गूथे, विश्वासों का जाल,
अंधियारे में मुझे सताए, मेरा ही कंकाल.

तन सूखा, मन डूबा है, तू देख ले मेरा हाल,
रोक ले शब्दों के कोड़ों को, खिंचने लगी है खाल.

सास ससुर हैं लोभी मेरे, शौहर है कंगाल,
नन्द की शादी रुकी है माँ, मत भेज मुझे ससुराल.

इच्छाएँ बैरी हैं सुख की, जी की हैं जंजाल,
जितनी कम से कम हों पूरी, बस उतनी ही पाल.

जब जब बाढ़ का रेला आया, जब जब पडा अकाल,
जनता दाना दाना तरसी, बनिया हुवा निहाल.

वाह वाह की भूख बढाए, टेट में रक्खा माल,
'मुंकिर' छोड़ डगर शोहरत की, पूँजी बची संभाल.

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، مَن کو بھیدے، بَھئے سے گوتھے، وِشواسوں کا جال
اندھیرے میں مجھے ستاۓ، میرا ہی کنکال٠ 

، تن سوکھا، ہردے ہے ڈوبا، دیکھ تو میرا حال
روک لے شَبدوں کے کوڑے کو، کِھنچنے لگی ہے کھال٠ 

، ساس سُسر ہیں لوبھی میرے، شوہر ہے بد حال 
نند کی شادی رُکی ہے ماں! مت بھیج مجھے سُسرال٠ 

، اِچھائیں ہیں بیری سُکھ کی، جی کی ہیں جنجال 
جتنی پوری کر پایے تو، بس اُتنی ہی پآل٠ 

، جب جب باڑھ کا ریلہ آیا، جب جب پڑا اکال 
جنتا دانہ دانہ ترسی، بنیا ہوا نہال٠ 

، واہ واہ کی بھوک بڑھاۓ، ٹیٹ میں رکّھا مال 
منکر چھوڑ ڈگر شہرت کی، پونجی بچی سنبھال٠ 

1 comment:

  1. बाड़ करि रेला आया जब जब भया अकाल |
    जनता दाने को तरसि, नेता हुवा निहाल ||

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