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बहुत दुखी है, जीता है वह, बस केवल अभिलाषा में,
सांस ऊपर की आशा में ले, नीचे जाए निराशा में.
बड़ी तरक़्क़ी की है उसने, लोगों की परिभाषा में,
पाप कमाया मन मन भर, और पुन्य है तोला माशा में.
अय्याशी में कटी जवानी, पाल न पाए बच्चों को,
अंत में गेरुवा बस्तर धारा, पल जाने की आशा में.
महशर के इन हंगामों को, मेरे साथ ही दफ़ना दो,
अमल ने सब कुछ खोया पाया, क्या रक्खा है लाशा में.
ज्ञानी,ध्यानी,आलिम,फ़ाज़िल, श्रोता गण की महफ़िल में,
'मुंकिर' अपनी ग़ज़ल सुनाए, टूटी फूटी भाषा में.
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،بہت دُکھی ہے، جیتا ہے وہ، بس کیول ابھیلاشا میں
سانس اُوپر کی آشا میں لے، نیچے جائے، نراشا میں٠
،بڑی ترقّی کی ہے اُسنے، لوگوں کی پریبھاشا میں
پاپ کمایا من من بھر، اور پُنیہ ہے تولہ ماشہ میں٠
،عیاشی میں کٹی جوانی، پال نہ پاۓ بچوں کو
انت میں گیروا بستر دھارا، پَل جانے کی آشا میں٠
،محشر کے ان افسانو کو، میرے ساتھ ہی دفنا دو
عمل نے سب کُچھ کھویا پایا، کیا رکھا ہے لاشہ میں٠
،گیانی دھیانی، عالم فاضل، شروتا گن کی محفل میں
منکر اپنی غزل سناۓ، ٹوٹی پھوٹی بھاشا میں٠
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