Sunday, May 13, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 57 बहुत सी लग्ज़िशें ऐसी हुई हैं,


57

बहुत सी लग्ज़िशें ऐसी हुई हैं,
कि सासें आज भी लरज़ी हुई हैं.

मेरे इल्मो हुनर रोए हुए हैं,
मेरी नादानियाँ हंसती हुई हैं.

ये क़द्रें जिन से तुम लिपटे हुए हो,
हमारे अज़्म की उतरी हुई हैं.

वो चादर तान कर सोया हुवा है,
हजारों गुत्थियाँ उलझी हुई हैं.

बुतों को तोड़ कर तुम थक चुके हो,
तरक्क़ी तुम से अब रूठी हुई है.

शहादत नाम दो या फिर हलाक़त,
सियासत, मौतें, तेरी दी हुई हैं.

हमीं को तैरना आया न मुंकिर,
सदफ़ हर लहर पर बिखरी हुई हैं.

***

،بہت سی لغزشیں ایسی ہوئی ہیں 
کہ ساسیں آج بھی لرزی ہوئی ہیں٠ 

،میرے علم و ہُنر روئے ہوئے ہیں  
میری نادانیاں ہنستی ہوئی ہیں٠ 

،یہ قدریں جِن سے تم لِپٹے ہوئے ہو 
ہمارے عزم کی اُتری ہوئی ہیں٠ 

وہ چادر تان کر سویا ہوا ہے
زارو گُتّھیاں اُلجھی ہوئی ہیں٠ 

،بُتوں کو توڑ کر تم تھک گئے ہو 
عُروجیں تم سے اب روٹھی ہوئی ہیں٠ 

،شہادت نام دو، یا پھر حلاقت 
یہ موتیں لیڈروں کی دی ہوئی ہیں٠ 

،ہمیں کو تیرنا آیا نہ منکر 
صدف ہر لہر پر بکھری ہوئی ہیں٠

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