Sunday, December 22, 2013

Junbishen 120



दुआ ए ग़ैर 

या इलाही हर बला से, तू मुझे महफ़ूज़ रख .
सब मरें मेरी बला से, तू मुझे महफ़ूज़ रख .

है ये बेहतर कि पड़ोसी के यहाँ हों सरफ़रोश ,
इन्क़लाबी हादसा से, तू मुझे महफ़ूज़ रख .

न पुलिस वालों से मेरा, हो कभी साहब सलाम ,
और हिजड़ों की अदा से, तू मुझे महफ़ूज़ रख .

सौ बरस तक मैं मरीज़ों की दवा करता रहूँ ,
नातवानी ओ क़ज़ा से, तू मुझे महफ़ूज़ रख .

मेरा धंधा है कुछ ऐसा , नर्क है पर्यावरण ,
देख , दैविक आपदा से, तू मुझे महफ़ूज़ रख .

हाय! ये मुंकिर है बैठा, राह में बन कर फ़क़ीर ,
इस दहेरिए की दुआ से तू मुझे महफ़ूज़ रख .

सफ़ैद झूट

दाढ़ी है सन सफ़ैद औ मोछा सफ़ैद है,
धोती निरी  सफ़ैद औ कुरता सफ़ैद है,
नेता की टोपी जूता औ मोज़ा सफ़ैद है,
देख सखी झूट औ कितना  सफ़ैद है।

5 comments:

  1. मुकिर भाई आप अपना फॉण्ट बड़ा कीजिये और कमेन्ट से वर्ड वेरिफिकेशन हटा दीजिये .टिप्पणी करने में आसानी होगी

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  2. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २४/१२/१३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी,आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है।

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  3. वर्दी धरे बदन में वो शोफर सुफैद है..,
    दरपेश शह सवारी धुलकर सुफैद है..,
    शब् भी शर्माए सियासती स्याही से..,
    पेशवा कहे के मिरा दामन सुफैद हैं.....

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  4. वर्दी धरे बदन में वो शोफर सुफैद है..,
    दरपेश शह सवारी धुलकर सुफैद है..,
    शब् भी शर्माए सियासती स्याही से..,
    पेशवा के फ़र्द का फ़र फ़र सुफैद हैं.....?

    फ़र्द = चादर, शाल

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