Tuesday, December 10, 2013

Junbishen 114



क़ता 
ओ सूरज 
लाखों बरस से किसके लिए जूझता है तू ,
गर्दिश के बंधनों से कभी ऊबता है तू ,
ढो ढो के थक गया हूँ, ज़माने का बोझ मैं ,
 सूरज मुझे बता, कि कहाँ डूबता है तू .


विरासतें 
कुछ लोग छोड़ते हैं मरने के बाद ज़र,
कुछ लोग छोड़ते हैं दीवार ओ दर का घर,
कैसी विरासतें हैं इन पीर ओ पयम्बर की,
इंसानियत के हक में दीन  ओ धरम का शर. 


फ़िक्र ए आखरत 
है लाश को परवाह, मिले कोई ठिकाना ?
गड़ना है कि जलना है कि गंगा में बहाना ?
ऐ लाश जानदार!तू छोड़ इसकी फ़िक्र,
बदबू जो उठेगी तो, उठाएगा ज़माना।  

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