Wednesday, December 18, 2013

Junbishen 118

रुबाइयाँ  

बस यूं ही ज़रा पूछ लिया क्यों है खड़ा?
दो चार अदद घूँसे मेरे मुंह जड़ा ,
आई हुई शामत थी , मज़ा चखना था,
सोए हुए कुत्ते पे मेरा पैर पड़ा. 


मज्मूम सियासत की फ़ज़ा है पूरी,
हमराह मुनाफ़िक़ हो नहीं मजबूरी, 
ढोता है गुनाहों को, उसे ढोने दो,
इतना ही बहुत है कि रहे कुछ दूरी.


मेहनत की कमाई   पे ही जीता है फ़कीर,
हर गाम कटोरे में भरे अपना ज़मीर,
फतवों की हुकूमत थी,था शाहों का जलाल,
बे खौफ़ खरी बात ही करता था कबीर.

1 comment:

  1. वो चोर है शातिर लाल क़िले पे खड़ा..,
    बताता खुद को वो शहंशाह है बड़ा..,
    जम्हूरी दौलत नामे उसका खानदान..,
    हर रह जिसके रिश्तेमंद का नाम जड़ा.....

    जम्हूर = जनता

    ReplyDelete