रुबाइयाँ
बस यूं ही ज़रा पूछ लिया क्यों है खड़ा?
दो चार अदद घूँसे मेरे मुंह जड़ा ,
आई हुई शामत थी , मज़ा चखना था,
सोए हुए कुत्ते पे मेरा पैर पड़ा.
मज्मूम सियासत की फ़ज़ा है पूरी,
हमराह मुनाफ़िक़ हो नहीं मजबूरी,
ढोता है गुनाहों को, उसे ढोने दो,
इतना ही बहुत है कि रहे कुछ दूरी.
मेहनत की कमाई पे ही जीता है फ़कीर,
हर गाम कटोरे में भरे अपना ज़मीर,
फतवों की हुकूमत थी,था शाहों का जलाल,
बे खौफ़ खरी बात ही करता था कबीर.
वो चोर है शातिर लाल क़िले पे खड़ा..,
ReplyDeleteबताता खुद को वो शहंशाह है बड़ा..,
जम्हूरी दौलत नामे उसका खानदान..,
हर रह जिसके रिश्तेमंद का नाम जड़ा.....
जम्हूर = जनता