नज़्म
शकर पारे
आओ कुछ सच्ची इबारत पढ़ लें ,
सतह पर तैरें न, गहरे डूबें ,
दिल में गूंगे से पड़े, दिल बोलें ,
कानों की बहरी समाअत जागें .
जुन्बिशें लब की खुली आँख चुनें ,
हम दलीलों के फटे होंट सिएँ ,
तन में बैठा है नया मन, ढूँढें ,
जश्त इक लेके, बुलंदी को छुएँ .
दिल अगर चाहे तो नाचें गाएं ,
इन से उनसे न कभी शर्माएं,
साथ पागल के कभी बौराएँ ,
खोखले पन को ख़ला भर पाएं .
हम अकेले हैं कितने खुद देखें ,
फिर ज़माने से अपना हिस्सा लें ,
ना मुनासिब है कि छीने झपटें ,
बाक़ी औरों के लिए रहने दें .
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