Sunday, December 29, 2013

Junbishen 123

ग़ज़ल 

कौन आमादाए फ़ना होगा,

कोई चारा न रह गया होगा।

लूट लूँ सोचता हूँ ख़ुद को मैं,

दूसरे लूट लें लूट लें बुरा होगा।

एडियाँ जूतियों की ऊँची थीं,

क़द बढ़ाने में गिर गया होगा।

दे रहे हो ख़बर क़यामत की,

कान में तिनका चुभ गया होगा।

अब तो तबलीग़ वह चराता है,

पहले तबलीग़ को चरा होगा।

दफ़अतन वह उरूज3 पर आया,

कोई पामाल4 हो गया होगा।

मेरे बच्चे हैं कामयाब सभी,

मेरे आमाल का सिलह होगा।

आँखें राहों पे थीं बिछी 'मुंकिर',

किस तरह माहे-रू चला होगा।

१-धर्म प्रचार २-अचानक ३-शिखर ४-मलियामेt

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