Monday, December 2, 2013

Junbishen 110

दोहे


बा-मज़हब मुस्लिम रहे, हिदू रहे सधर्म,
अवसर दंगा का मिला, हत्या इन का धर्म।

इंसानी तहज़ीब के, मिटे हैं कितने रूप ,
हिन्दू मुस्लिम टर्र रटें , खोदें मन में कूप .

काहे हंगामा करे, रोए ज़ारो-क़तार,
आंसू के दो बूँद बहुत हैं, पलक भिगोले यार।

'मुंकिर' कच्ची सोच है, ऊपर है इनआम,
इस में गारत कर लिया, नीचे का मय जाम।

हम में तुम में रह गई, न नफ़रत न चाह,
बेहतर है हो जाएँ अब, अलग अलग ही राह.

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