ग़ज़ल
वह जब क़रीब आए ,
इक खौफ़ दिल पे छाए।
जब प्यार ही न पाए,
महफ़िल से लौट आए।
दिन रात गर सताए,
फ़िर किस तरह निंभाए?
इस दिल से निकली हाय!
अब तू रहे की जाए।
रातों की नींद खो दे,
गर दिन को न सताए।
ताक़त है यारो ताक़त,
गर सीधी रह पाए।
है बैर भी तअल्लुक़
दुश्मन को भूल जाए।
हो जा वही जो तू है,
होने दे हाय, हाय।
इक़रार्यों का काटा,
'मुंकिर' के पास आए.
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अपनी समझ में आई अब आपको समझाएं..,
ReplyDeleteहसीनों के नाजो-नखरे से अल्लाह ही बचाए.....