Sunday, December 8, 2013

Junbishen 113



क्या शय है मनुवाद, तेरा खोटा निजाम,
महफूज़ बरहमन के लिए, हर इक जाम,
मैं ने है पढ़ा तेरी मनु स्मृति में,
सर शर्म से झुकता है, तेरा पढ़ के पयाम.


मूसा सा अड़ा मैं तो, क़बा खोल दिया, 
सदयों से पड़ी ज़िद की, गिरह खोल दिया,
रेहल रख दिया, उसपे किताबे महशर,
पढने के लिए उसने नदा खोल दिया.


मिम्बर पे मदारी को, अदा मिलती है,
मौज़ूअ पे मुक़र्रिर को, सदा मिलती है,
रुतबा मेरा औरों से, ज़रा हट के है,
हम पहुंचे हुवों को ही, नदा मिलती है. 

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