दुआ ए ग़ैर
या इलाही हर बला से, तू मुझे महफ़ूज़ रख .
सब मरें मेरी बला से, तू मुझे महफ़ूज़ रख .
है ये बेहतर कि पड़ोसी के यहाँ हों सरफ़रोश ,
इन्क़लाबी हादसा से, तू मुझे महफ़ूज़ रख .
न पुलिस वालों से मेरा, हो कभी साहब सलाम ,
और हिजड़ों की अदा से, तू मुझे महफ़ूज़ रख .
सौ बरस तक मैं मरीज़ों की दवा करता रहूँ ,
नातवानी ओ क़ज़ा से, तू मुझे महफ़ूज़ रख .
मेरा धंधा है कुछ ऐसा , नर्क है पर्यावरण ,
देख , दैविक आपदा से, तू मुझे महफ़ूज़ रख .
हाय! ये मुंकिर है बैठा, राह में बन कर फ़क़ीर ,
इस दहेरिए की दुआ से तू मुझे महफ़ूज़ रख .
सफ़ैद झूट
दाढ़ी है सन सफ़ैद औ मोछा सफ़ैद है,
धोती निरी सफ़ैद औ कुरता सफ़ैद है,
नेता की टोपी जूता औ मोज़ा सफ़ैद है,
देख सखी झूट औ कितना सफ़ैद है।
मुकिर भाई आप अपना फॉण्ट बड़ा कीजिये और कमेन्ट से वर्ड वेरिफिकेशन हटा दीजिये .टिप्पणी करने में आसानी होगी
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २४/१२/१३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी,आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है।
ReplyDeleteबेहतरीन.....
ReplyDeleteवर्दी धरे बदन में वो शोफर सुफैद है..,
ReplyDeleteदरपेश शह सवारी धुलकर सुफैद है..,
शब् भी शर्माए सियासती स्याही से..,
पेशवा कहे के मिरा दामन सुफैद हैं.....
वर्दी धरे बदन में वो शोफर सुफैद है..,
ReplyDeleteदरपेश शह सवारी धुलकर सुफैद है..,
शब् भी शर्माए सियासती स्याही से..,
पेशवा के फ़र्द का फ़र फ़र सुफैद हैं.....?
फ़र्द = चादर, शाल