रुबाइयाँ
ज़ालिम के लिए है तेरी रस्सी ढीली,
मजलूम की चड्ढी रहे पीली गीली,
औतार ओ पयम्बर को, दिखाए जलवा,
और हमको दिखाए, फ़क़त छत्री नीली.
है रीश रवाँ, शक्ल पे गेसू है रवां,
हँसते हैं परी ज़ाद सभी, तुम पे मियाँ,
मसरूफ इबादत हो, मशक्क़त बईद,
करनी नहीं शादी तुम्हें? कैसे हो जवान.
जब तक नहीं जागोगे दलित और पिछडो,
आपस में लड़ोगे यूं ही शोषित बंदो,
ग़ालिब ही रहेंगे तुम पे ये मनुवादी,
ऐ अक्ल के अन्धो! और करम के फूटो !!
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