ग़ज़ल
वह्म का परदा उठा क्या, हक़ था सर में आ गया,
दावा ऐ पैग़म्बरी, हद्दे बशर में आ गया.
खौ़फ़ के बेजा तसल्लुत1, ने बग़ावत कर दिया,
डर का वो आलम जो ग़ालिब था, हुनर में आ गया.
यादे जानाँ तक थी बेहतर, आक़बत2 की फ़िक्र से,
क्यूं दिल ए नादाँ, तू ज़ाहिद के असर में आ गया.
जितनी शिद्दत से, दुआओं की सदा कश्ती में थी,
उतनी तेज़ी से सफ़ीना, क्यूँ भंवर में आ गया.
छोड़ कर हर काम, मेरी जान तू लाहौल3 पढ़,
मन्दिर व् मस्जिद का शैताँ, फिर नगर में आ गया.
एक दीन इक बे हुनर, बे इल्म और काहिल वजूद,
लेके पुडि़या दीन की "मुंकिर" के घर में आ गया.
१-लदान २ -परलोक ३-धिक्कार मन्त्र
وہم کا پردہ اُٹھا کیا، حق تھا سر میں آ گیا
دعوهء پیغمبری، حدِّ بشر میں آ گیا٠
خوف کے بے جہ تسلّط نے بغاوت کر دیا
ڈر کا وہ عالم جو غالب تھا، ہُنر میں آ گیا٠
یادِ جاناں تک تھی بہتر، عاقبت کی فکر سے
کیوں دلِ ناداں تو زاہد کے اثر میں آ گیا٠
جِتنی شدّت سے دعا وں کی صدا کشتی میں تھی
اُتنی تیزی سے سفینہ کیوں بھنور میں آ گیا٠
چھوڑ کر ہر کام میری جان تو لاحول پڑھ
مندرو مسجد کا شیطاں، پھر نگر میں آ گیا٠
ایک دن اِک بے ہنر، بے علم اور کاہل وجود
لے کے پُڑ یہ دین کی، منکر کے گھر میں آ گیا٠
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