Tuesday, May 21, 2019

जुंबिशें -----------नज़्म--शक के मोती


नज़्म 
शक के मोती

शक जुर्म नहीं, शक पाप नहीं, शक ही तो इक पैमाना है,
विश्वाश में तुम लुटते हो सदा, विश्वाश में कब तक जाना है.

शक लाज़िम है भगवान व् , ख़ुदा पर जिनकी सौ दूकानें हैं,
औतार ओ पयम्बर पर शक हो, जो ज़्यादः तर अफ़साने1हैं.

शक हो सूफ़ी सन्यासी पर, जो छोटे ख़ुदा बन बैठे हैं,
शक फूटे धर्म ग्रंथों पर, फ़ासिक़२ हैं दुआ बन बैठे हैं.

शक पनपे धर्म के अड्डों पर, जो अपनी हुकूमत पाए हैं,
जो पिए हैं ख़ून  की गंगा जल, जो माले ग़नीमत3 खाए हैं.

शक थोड़ा सा ख़ुद पर भी हो, मुझ पर कोई ग़ालिब४ तो नहीं?
जो मेरा गुरू बन बैठा है, वह बदों का ग़ासिब५ तो नहीं?

शक के परदे हट जाएँ तो, 'मुंकिर' हक़ की तस्वीर मिले,
क़ौमों को नई तअलीम मिले,ज़ेहनों को नई तासीर६ मिले.

१-कहानी २- मिथ्य  ३-युद्ध में लूटी सम्पत्ति ४-विजई ५ -अप्भोगी ६-सत्य

شک کے موتی 

شک جُرم نہیں ، شک پاپ نہیں ، شک ہی تو اِک پیمانہ ہے 
وِشواس میں تم لٹتے ہو صدا ، وِشواس میں کب تک جانا ہے ٠

شک لازم ہے بھگوان و خدا پر ، جن کی سو دوکانیں ہیں 
اوتار و پیمبر پر شک ہو ، جو زیادہ تر فرزانے ہیں ٠

شک ہو صوفی سنیاسی پر ، جو چھوٹے خُدا بن بیٹھے ہیں 
شک پھوٹے دھرم گرنتھوں پر فاسِق ہیں ، دُعا بن بیٹھے ہیں ٠

شک پھوٹے دھرم کے اڈوں پر ، جو اپنی حکومت پاۓ ہیں 
جو پیے ہیں خون کی ندیوں کو ، جو مالِ غنیمت کھاۓ ہیں ٠

شک تھوڑا سا خود پر بھی ہو ، مجھ پر کوئی غالب تو نہیں 
جو میرا گرو بن بیٹھا ہے ، وہ بندوں کا غاصِب تو نہیں 

شک کے پردے ہٹ جایں تو 'منکر' حق کی تصویر ملے 
قوموں کو نئی تعلیم ملے ، ذہنوں کو نئی تاثیر ملے ٠ 

1 comment:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23-05-19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3344 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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