Tuesday, May 14, 2019

जुंबिशें - नज़्म - - - ग्यारहवीं सदी की आहें


नज़्म
ग्यारहवीं  सदी की आहें

हमारे घर में घुसे, बस कि धड़धदाए हुए,
वो डाकू कौन थे? इन वादियों में आए हुए.

यक़ीन व् खौफ़, सज़ा और तमअ1 की तलवारें,
अजीब रब था कोई, उनको था थमाए हुए.

खुदाए सानी2 बने हुक्मराँ,वज़ीर ओ सिपाह,
सितम के तेग़ थे, हर शख़्स में चुभाए हुए.

जेहाद उनकी बज़िद थी, लड़ो या जज़या  दो,
नहीं तो ज़ेह्नी ग़ुलामी, को थे जताए हुए.

दलाल उसके, रिया कारियों3 का दीन लिए,
दूकाने अपनी थे, हर कूंचे में सजाए हुए.

दोबारा रोपे गए हैं, वह शजर4 हैं 'मुंकिर',
महद5 से माँ के हैं, ज़ालिम उसे उठाए हुए.

१-लालच २-द्वतीय ईश्वर ३-ढोंगी ४-पेड़ ५-पालना


گیاروھیں صدی کی آہیں

ہمارے گھر میں گھُسے ، بس کہ دھڑ دھاڑاے ہوئے  
وہ ڈاکو کون تھے ان وادیوں میں آے ہوئے ٠

یقین و خوف و طمع اور سزا کی تلواریں
عجیب رب تھا کوئی ، انکو تھا تھماے ہوئے ٠

خداۓ ثانی بنے حکمراں ، وزیر و سپاہ 
ستم کی تیغ تھے ، ہر ذہن میں چُبھاۓ ہوئے ٠

جہاد انکی بضد تھی ، لڑو کہ جزیہ دو 
وگرنہ ذہنی غُلامی کو تھے جتاے ہوئے ٠

دلال ان کے ، ریا کاریوں کا مال لئے 
دکانیں اپنی تھے ، ہر کوچے میں سجاۓ  ہوئے ٠

دوبارہ روپے گۓ ہیں ، شجر وہ ہیں 'منکر' ٠
محدِ مادر سے  ہیں، ظالم اُسے اُٹھاۓ ہوۓ ٠

1 comment:

  1. रियाकार वो इस कदर के माज़ी को बिसराए है..,
    अपने पुश्तों पुरखों को राहजन बतलाए है..,

    मलिकी मुल्के ग़ैर की ज़ब्ते-जऱ से पैदा होकर..,

    उसकी मुल्के दारी पर फिर अपना हक़ जतलाए है.....

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