रुबाइयात
फिर धर्म के पाखण्ड पे भारत है रवाँ,
खो दे न तवानाई व् तरक्की ये जवाँ,
बढ़ चढ़ के दिमागों पे है मज़हब की अफ़ीम,
हुब्बुल वतनी का जज़्बा है कहाँ?
پھر دھرم کے پاکھنڈ پہ ، بھارت ہے رواں
کھو دے نہ توانائی و ترققی یہ جواں
بڑھ چڑھ کے دماغوں پہ ہے مذہب کی افیم
حب الوطنی کا جزبہ ہے کہاں ٠
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हो सकता है ठीक, दमा मिर्गी व् खाज,
बख्श सकता है जिस्म को रोगों का राज,
तर्बियतों की घुट्टी पिए है माहौल,
मुश्किल है बहुत मुंकिर ज़ेहनों का इलाज.
ہو سکتا ہے ٹھیک ، دَما مِرگی و کھاج
بَخش سکتا ہے جِسم کو روگوں کا راج
تربیّتوں کی گُھٹَی پیے ہے ماحول
مشکل ہے بہت منکر ذہنوں کا عِلاج ٠
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इक उम्र पे रुक जाए, जूँ बढ़ना क़द का,
कुछ लोगों में हश्र है, इसी तरह ख़िरद का,
मुंजमिद ख़िरद को ढोते हैं सारी उम्र,
रहता है सदा पास मुसल्लत हद का.
اِک عمر میں روک جاۓ جوں بڑھنا قد کا
کچھ لوگوں میں حشر ہے ، اسی طرح خِرد کا
منجمِد خِرد کو ڈھوتے ہیں ساری عمر
رہتا ہے صدا پاس مسلّط حد کا ٠
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