रुबाइयात
हैवान हुवा क्यूँ न भला, तख्ता ए मश्क़,
इंसान का होना है, रज़ाए अहमक,
शैतान कराता फिरे, इंसाँ से गुनाह,
अल्लाह करता रहे, उट्ठक बैठक.
तख्ता ए मश्क़=ब्लेक बोर्ड,रज़ाए =स्वीकृति
حیوان ہوا کیوں نہ بھلا تختہء مشق
اِنسان کا ہونا ہے رضاء احمق
شیطان کرا تا پِھرے ، انساں سے گناہ
الله کرا تا رہے ، اُٹھک بیٹھک ٠
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साइंस की सदाक़त पे यक़ीं रखता हूँ,
अफ़कार ओ सरोकार का दीं रखता हूँ,
सच की देवी का मैं पुजारी ठहरा,
बस दिल में यही माहे-जबीं रखता हूँ.
سائنس کی صداقت پہ یقیں رکھتا ہوں
افکار و سروکار کا دیں رکھتا ہوں
سچ کی دیوی کا میں پُجاری ٹھہرا
بس دل میں یہی ماہِ جبیں رکھتا ہوں
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हमदर्द भी होते, वह दवा भी होते,
वह मेरे मददगार नुमा भी होते,
लाज़िम था कि होता न मैं, उनसे बढ़ कर,
वह मुझ पे हँसा, करते फ़िदा भी होते.
ہمدرد بھی ہوتے ، وہ دوا بھی ہوتے
وہ میرے مدد گار، نُما بھی ہوتے
لازم تھا کہ ہوتا نہ میں ، اُن سے بڑھ کر
وہ مجھ پہ ہنسا کرتے ، فدا بھی ہوتے ٠
दिल को सियाहे-बख़्त किए उठते हो सुबहे रोज..,
ReplyDeleteमासूम- ओ - मज़लूम को फिर करते हो जबहे रोज..,
पीरानेपीर- ओ- मुर्शिद अरे कहते हो खुद को..,
जफासियारी के दस्तूर को देते हो जगहे रोज़.....