Wednesday, May 29, 2019

क़तआत


क़तआत 

फ़ितरी लम्हे 

फ़ितरत ए वहशी जवाँ थी, नातवाँ फ़िक्र ए गुनाह,
हुस्न का आतश फ़शां था, थी न कोई सर्द राह,
पिघली यूँ ज़ंजीर ए तक़वा, खौ़फ़ पत्थर का था छू,
लिख भी दे कोई सज़ा , ऐ जज़ाए फ़ितना गाह.
नातवाँ=कमज़ोर , आतश फ़शां =ज्वालामुखी ,तक़वा=परहेज़ 
जज़ाए फ़ितना गाह=क़यामत का मैदान 

فِطری لمحے 
فِطرتِ وحشی جواں تھی ، نا تواں فکرِ گناہ 
حسن کا آتش فشاں تھا ، تھی نہ کوئی سرد را ہ،
پِگھلی یوں زنجیر تقویٰ ، خوفِ سنگ ساری تھا چهو 
لِکھ بھی دے کوئی سزا اب ، ائے جزا ے فِتنہ گاہ ٠


अना को फ़ना 

इस अना को सुपुर्द ए क़ब्र करो,
है ये बेहतर की ख़ुद पे जब्र करो,
बाद में वह भी ज़िद को छोड़ेगा ,
भाई मुंकिर ! ज़रा सा सब्र करो . 
अना=मर्यादा 

انا کو فنا

اِس انا کو سُپُردِ قبر کرو 
ہے یہ بہتر کہ خود پہ جبر کرو 
بعد میں وہ بھی ضِد کو چھوڑے گا ،
میاں 'منکر' ذرا سا صبر کرو ٠ 


गोचा पेची 

सब कुछ तो साफ़ साफ़ था इरशाद ए किबरिया,
तफ़सीर लिखने वालो बताओ ये क्या किया,
 कैसे अवाम पढ़ के उठाएँगे फ़ायदे ?  
तुमने लिखे हुए पे ही कुछ और लिख दिया. 
इरशाद ए किबरिया=क़ुरान , तफ़सीर=भावार्थ 

گوچہ - پیچی

سب کچھ تو صاف صاف تھا ، ارشادِ کِبریہ 
تفسیر لکھنے والو بتاؤ یہ کیا کیا 
کیسے عوام پڑھ کے ، سمجھ لینگے حقیقت 
تم نے لکھے ہوئے پہ ، ہی کچھ اور لکھ دیا ٠
***

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