Sunday, September 23, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 68 ख़ुदकुशी


68

ख़ुदकुशी 

ख़ुद कुशी जुर्म नहीं, उम्र के क़ैदी हैं सभी,
मुझको आती है हँसी, आलम ए हैरत में कभी,
रग पे, धड़कन पे, हुकूमत की इजारा दारी,
अपनी सासों में भी, गोया है दख़्ल  सरकारी.

गर किसी का कोई एक चाहने वाला भी न हो,
शर्म व ग़ैरत का, अगर एक नवाला भी न हो,
दर्द ए अमराज़1 से जीने की सज़ा मिलती हो,
एक लाचार को रहमों की, बला मिलती हो,

बुज़दिली ये है कि, मर मर के जिए जाते हैं,
है तो ज़िल्लत की, मगर सांस लिए जाते हैं.
मरना आसान नहीं है, ये बहुत मुश्किल है,
वक़्त माक़ूल2 पर मर ले, वह बशर कामिल है. 

जिंदगानी पे अगर वाक़ई दिल से रो दे,
जीना चाहें तो जिएँ, वर्ना ज़िन्दगी खो दे.
कोढ़ी मफ़लूज3 व् अपाहिज को चलो समझाएँ ,
ख़ुद कुशी करने की तरकीब, उन्हें बतलाएँ. 

उनको बतलाएँ, ज़मीं हड़ के उन्हें सहती है,
ज़िन्दा लाशों से ज़मीं, पाक नहीं रहती है.

1 रोग 2 उचित 3 सुरक्षित   

خود کُشی 

خود کُشی جُرم نہیں ، عُمر کے قیدی ہیں سبھی 
مجھکو آتی ہے ہنسی ، عالمِ حیرت میں کبھی 
رگ پہ ، دھڑکن پہ ، حُکومت کی اِجارہ داری 
اپنی ساسوں پہ بھی ، گویہ ہے دخل سرکاری ٠ 

گر کسی کا کوئی ، اِک چاہنے والا ہی نہ ہو 
شرم و غیرت کا اگر ، ایک نوالہ بھی نہ ہو 
درد اِمراض سے ، جینے کی سزا ملتی ہو 
ایک لاچار کو ، رحموں کی بلا ملتی ہو 
بزدلی یہ ہے کہ ، مر مر کے جے جاتے ہیں
ہے تو ذلّت کی ، مگر سانس لئے جاتے ہیں ٠ 

مرنا آسان نہیں ہے ، یہ بڑا مشکل ہے 
وقتِ معقول پہ مر لے ، وہ بشر کامل ہے ٠ 

زندگانی پہ اگر واقعی ، دل سے رو دے 
پھر تو بہتر ہے، بارِ گراں ہستی کھو دے ٠ 

کوڑھی ، مفلوج و اپاہج کو ، چلو سمجھا ئیں 
خود کشی کرنے کی ، ترکیب اِنھیں بتلائیں 
اِنکو سمجھا ئیں ، زمیں ہڑ کے اِنھیں سہتی ہے 
زندہ لاشوں سے ، زمیں پاک نہیں رہتی ہے ٠ 

6 comments:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २४ सितंबर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



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  2. वह ख़ुदकुशी पर नितांत नया मौलिक चिंतन
    आदरणीय बहुत शानदार लेखन देखकर बहुत अच्छा लगा | सादर शुभकामनायें |

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  3. वाह!!!
    क्या बात कही है खुदकुशी पर....
    लाजवाब....

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  4. लाजवाब !! बहुत खूब आदरणीय ।

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  5. ऐ शायर-ए-आज़म ! ख़ुदकुशी पर इतनी ख़ूबसूरत नज़्म कहने से पहले आपने श्मशानों और क़ब्रिस्तानों में थोक में इंतज़ामात तो करा लिए होते.

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