Sunday, September 16, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 61 बदबूदार ख़ज़ानें


61

बदबूदार ख़ज़ानें

माज़ी1 का था समंदर, देखा लगा के ग़ोता,
गहराइयों में उसके, ताबूत कुछ पड़े थे,
कहते हैं लोग जिनको, संदूकें अज़मतों2 की,
बेआब जिनके अंदर, रूहानी मोतियाँ थीं.
आओ दिखाएँ तुमको रूहानी अज़मतें कुछ ----

अंधी अक़ीदतें थीं, बोसीदा आस्थाएँ,
भगवान राजा रूपी, शाहान कुछ ख़ुदा वंद,
मुंह बोले कुछ पयम्बर, अवतार कुछ स्वयम्भू ,
ऋषि व् मुनि की खेती, सूखी पडी थी बंजर.

शरणम कटोरा गच्छम, ख़ैरात खा रहे थे.
रूहानियत के ताजिर, नोटें भुना रहे थे.

उर्यानियत5 यहाँ पर देवों की सभ्यता थी,
डाकू भी करके तौबा, पुजवा रहे हैं ख़ुद को,
कितने ही ढलुवा चकनट, मीनारे-फ़लसफ़ा थे.

संदूक्चों में देखा, आडम्बरों के नाटक,
करतब थे शोबदों के, थे क़िज़्ब के करश्में,
कुछ बेसुरी सी तानें, कुछ बेतुके निशाने,
फ़रमान ए आसमानी9, दर् अस्ल हाद्सती10.
आकाश वानिया कुछ, छलती, कपटती घाती.

थीं कुछ कथाएँ कल्पित, दिल चस्प कुछ कहानी,
कुछ क़िस्से ईं जहानी11, कुछ क़िस्से आं जहानी12.
जंगों की दस्तावेज़ें, जुल्मों की दास्तानें,
गुणगान क़ातिलों के, इंसाफ़ के फ़सानें.

पाषाण युग की बातें, सतयुग पे चार लातें,
आबाद हैं अभी भी, माज़ी की क़ब्र गाहें,
हैरत है इस सदी में, ये बदबू दार लाशें,
कुछ लोग सर पे लेके अब भी टहल रहे हैं.

1 -अतीत 2 -मर्यादाएं 3 -आस्था 4-जीर्ण 5-नागापन 6-दार्शनिकता के स्तम्भ 7-तमाशा 8- मिथ्या 
9-आकाश वाणी 10-दुखद 11-इस जहान के 12 उस जहान के। 

بدبو دار خزانے

، تھا ماضی کا سمندر ، دیکھا لگا کے غوطہ
،گہرایوں میں اِسکے ، تابوت کچھ پڑے تھے
،کہتے لوگ جِنکو ، مینار عظمتوں کی
،جِنکی بلندیوں میں ، روحانی موتیاں ہیں
، - - - آؤ دکھائیں تم کو تابوطی عظمتیں کچھ 

،اندھی عقیدتیں تھیں ، بوسیدہ آستھائیں
،بھگوان راجہ روپی ، کچھ بادشہ خداوند
،خود ساختہ پیمبر، اوتار کچھ سویمبھو
،رِشیوں کی راہبوں کی کھیتی پڑی تھی بنجر
شرنم کٹورہ گچھچھم ، خیرات کھا رہے تھے
روحانیت کے تاجر، نوٹیں بُھنا رہے تھے٠ 
ڈاکو بھی توبہ کرکے ، خود کو پُجا رہے تھے٠ 

،کتنے ہی سر کے خالی ، مینار فلسفہ تھے
،عُریانیت بھی دیکھی ، تھے لایقِ عبادت
،سندوقچوں میں دیکھےآ ڈمبروں کے ناٹک
،کرتب تھے شعبدوں کے ، اور کزب کے کرشمے
،کچھ بے سُری سی تانیں ، کچھ بے تُکی مثالیں
،فرمان آسمانی ، در اصل حادثاتی
 آکاش وانیاں کچھ چھلتی کپٹتی گھاتی٠ 

،تھیں کچھ کتھا ئیں کلپیت ، دل چسپ کچھ کہانی
،کچھ قصّے ایں جہانی ، کچھ قصّے آں جہانی
،جنگوں کی پوتھی پتری ، ظُلموں کی داستانیں
،گُنگان قاتلوں کے ، انصاف کے فسانے
،پاشان یُگ کی باتیں ، نو یُگ پہ چار لاتیں
،آباد ہیں ابھی تک ماضی کی قبر گاہیں
،حیرت ہے اس صدی میں، یہ بدبو دار لاشیں
کُچھ لوگ سر پہ رکھ کر ، اب بھی ٹھل رہے ہیں ٠

3 comments:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १७ सितंबर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



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  2. वाह और फिर वाह ! वाह ! इतनी ख़ूबसूरत नज़्म बहुत दिनों बाद पढ़ने को मिली. क्या पहाड़ी नदी जैसी रवानगी है और क्या हिमालय जैसे ऊंचे ख़यालात हैं ! और तंज़ भी ऐसे कि जिस पर कसे जाएं, वो भी वाह, वाह कर उठे. हम तो आशिक़ हो गए इस अंदाज़-ओ-सुखन के.

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