Wednesday, September 12, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 57 वसीयत नामः


57

वसीयत नामः 

मेरे बच्चो सही कहने की, मोहलत तुम नहीं लेना,
ग़लत बातों में हाँ में हाँ की आदत तुम नहीं लेना.

जो मेहनत से मिले अमृत, जो मांगे से मिले पानी,
जो छीना झपटी से आए, वह दौलत तुम नहीं लेना. कबीर 

लक़ब* तुमको ग़नी# का मुफ़्त दे जाएँगे बे ग़ैरत,
कभी भी मुफ़्त खो़रों से ये शोहरत तुम नहीं लेना.

जो सीधे सादे और अनपढ़ बुज़ुर्गों के मुक़ाबिल हों,
ज़मीं पर फेंकना, ऐसी ज़ेहानत1 तुम नहीं लेना. 

छिपा है जो भी धरती में, अमानत है वो ख़िलक़त का,
इसे लेकर ज़माने की अदावत तुम नहीं लेना. 

यतीमों की किफ़ालत में, उधर भी है तमअ2 की बू ,
इधर ग़ासिब2  का तुरका3 है, अमानत तुम नहीं लेना. 

पड़े मज़लूम को सर पे, उठा कर घर पे ले आना,
किसी ज़ालिम के गोशे की, हिफ़ाज़त तुम नहीं लेना. 

बड़ा आलिम है वह मसूमयत को खो चुका होगा,
वहां पर जा के कम अक़्लो, हिक़ारत4 तुम नहीं लेना. 

जरायम थे मेरे जायज़, मज़ालिम के ठिकानों पर,
मुझे लड़ना है दोबारा, ज़मानत तुम नहीं लेना. 

नमाज़ें बख्शवाएंगी, गुनहगारों  को मह्शर में,
गुनाहों से बचो मुंकिर, ये जन्नत तुम नहीं लेना.

* उपाधि #दानी  1 बुद्दिमत्ता 2 लालच + विरासत 3हक मार का  माल 4 घृणा &=पालन पोषण  

وصیت نامہ 

،میرے بچّو صحیح کہنے کی ، مہلت تم نہیں لینا 
غلط باتوں میں ، "ہاں میں ہاں" کی عادت تم نہیں لینا 
٠ 
،جو محنت سے ملے نعمت ، جو مانگے سے ملے پانی 
(جو چھینا جھپٹی سے آے ، وہ دولت تم نہیں لینا ٠ (کبیر

،لقب تم کو غنی کا مُفت ، دے جاینگے بے غیرت 
کبھی بھی مُفت خوروں سے ، یہ شوہرت تم نہیں لینا ٠ 

،جو سیدھے سادے اور ان پڑھ ، بُزرگوں کو کریں قائل 
زمیں پر پھینکنا ، ایسی ذہانت تم نہیں لینا ٠ 

،چھپا ہے جو بھی دھرتی میں ، امانت وہ ہے خلقت کی 
اِسے لیکر زمانے کی ، عداوت تم نہیں لینا٠ 

،پڑے مظلوم کو سر پہ ، اُٹھا کر گھر میں لے آنا 
کسی ظالم کے گوشے میں ، حفاظت تم نہیں لینا٠ 

،جرا یم تھے میرے جائز ، مظالم کے ٹِھکانوں پر
مجھے لڑنا ہے دوبارہ ، ضمانت تم نہیں لینا 
٠ 
،نمازیں بخشواینگی ، گُنہگاروں کو محشر میں 
گُناہوں سے بچو 'منکر' یہ جنّت تم نہیں لینا ٠ 

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