Saturday, September 8, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 53 ताख़ीर1 के अंदेशे


53

 ताख़ीर1 के अंदेशे 

खोल दो दिल के दरीचे को, तुम पूरा पूरा, 
मैं भी पर पूरे समेटूँ तो कोई बात बने, 
मुन्तज़िर तुम भी हो इक ख़ाली मकाँ के दर पे,
मैं भी उतरा हूँ ख़लाओं2 से फ़ज़ा3 की छत पर. 

ज़ेहनी परवाज़ का पंछी था हुमा4 से आगे,
हुस्न परियों का, फरिश्तों की तबअ5 थी चाहत,
ढूँढता फिरता था, ये नादिर ए मुतलक़6 कोई,
तुम भी शायद हो पश ओ पेश में, मेरी ही तरह.

इनको गर ढूँढा किए, फिर तो जवानी दोनों,
सूखे गुल बन के, किताबों में सिमट जाएंगे,
दिल के दहके हुए आतिश क़दे बुझ जाएँगे,
आख़िरत की ये बहुत ही बुरी पामाली है.

पहली दस्तक के तकल्लुफ़ में हैं दोनों शायद,
आओ इस धुंध की वादी में, क़दम बढ़ जाएँ,
और फिर आलम ए राहत में हो क़ुर्बत इतनी,
मसलहत साज़ बनी बंदिशों की गाँठ खुलें,

मेरे पेशानी पे तुम होटों से पैगाम लिखो,
मैं सियह ज़ुल्फ़ पे तकमील8 के पैगाम पढूं.

1 विलम्ब 2 क्षितिज 3 हवा  4 आकाश का पंछी 5 तबीयत 6 बहुमूल्य 6 मिलन 8 परिपूर्ण  

تاخیر کے اندیشے 

،کھول دو تم بھی کبھی ، دل کے دریچے پورے  
،میں بھی پر تھوڑا سمیٹوں ، تو کوئی بات بنے  
،منتظر تم بھی ہو اک ، خالی مکان کے در پہ  
میں بھی اُترا ہوں ، خلاؤں کی فضا سے چھت پر ٠ 

،ذہنی پرواز کا پنچھی ، تھا ہمارے آگے  
،حُسن پریوں کا ، فرشتوں کی طبع تھی چاہت  
،ڈھونڈھتا پھرتا تھا دل ، نادرِ متلعق کوئی  
تم بھی شاید ہو پش و پیش میں میری ہی طرح ٠ 

،ان کو گر ڈھونڈھا کئے ، تب تو جوانی دونوں  
،سوکھے گل بن کے ، کتابوں میں سمِٹ جاینگے  
،دل کے دہکے ہوئے ، آتش کدے بھجھ جاینگے 
آخرت کی یہ بہت ہی بڑی پامالی ہے ٠ 

،پہلی دسخط کے تکلّف میں ، ہیں دونوں شاید  
،آؤ اس دھندہ کی وادی میں ، قدم بڑھ جا ئیں  
،اور پھر عالمِ راحت میں ، ہو قربت اتنی  
،مصلحت ساز بنی ، بندِشوں کی گانٹھ کھلے  
،میری پیشانی پہ ، تم ہوٹوں سے پیغام لکھو  
میں سیہ زلفوں پہ ، تکمیل کے فرمان پڑھونم ٠ 

1 comment:

  1. निमंत्रण विशेष :

    हमारे कल के ( साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक 'सोमवार' १० सितंबर २०१८ ) अतिथि रचनाकारआदरणीय "विश्वमोहन'' जी जिनकी इस विशेष रचना 'साहित्यिक-डाकजनी' के आह्वाहन पर इस वैचारिक मंथन भरे अंक का सृजन संभव हो सका।

    यह वैचारिक मंथन हम सभी ब्लॉगजगत के रचनाकारों हेतु अतिआवश्यक है। मेरा आपसब से आग्रह है कि उक्त तिथि पर मंच पर आएं और अपने अनमोल विचार हिंदी साहित्य जगत के उत्थान हेतु रखें !

    'लोकतंत्र' संवाद मंच साहित्य जगत के ऐसे तमाम सजग व्यक्तित्व को कोटि-कोटि नमन करता है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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