Tuesday, September 11, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 55 क़र्ब1 ए तन्हाई


55

क़र्ब1 ए तन्हाई 

तू भी चल उस सम्त, जिस पर ये ज़माना है रवाँ,
वर्ना छुट जाएगा 'मुंकिर' तुझ से तेरा कारवाँ.

अपने धुन की बोझ लेकर, तनहा तू रह जाएगा,
इन्किशाफ़ ऍ राज़ ऍ हस्ती2 किस पे तू झलकाएगा.

क्यों गुरेज़ाँ3 है जहाँ, खुद अपनी ही तकमील4 से,
क्यों झुसस जाती है दुन्या, सच की इक क़िनदील5 से.

नव अज़ाँ6  का सिलसिला, लेता है क्यों मुद्दत तवील7,
सौ सफ़र में रख के क्यों, आता है अगला संग ए मील.

ज़ेहन कैसे हम सफ़र हों, इरतेक़ाई8 चाल के,
मुज़्तरिब9 फ़ितरत को हैं, हर लम्हा सौ सौ साल के. 

इंतज़ार इ वक़्त बन, वह दिन यक़ीनन आएगा,
मज़हबों के इस जुनूँ से, आदमी थर्राएगा.

1 पीड़ा 2 हस्ती के रहस्य का खुलासा 3 अमान्य 4 परिपूर्णता 5 आकाश दीप 
5 नया पैग़ाम 7 लंबी 8 रचना 9 बेचैन तबीयत 

قربِ تقنہائی 

،تو بھی چل اس سمت ، جس پر یہ زمانہ ہے رواں  
،ورنہ چُھٹ جایگا 'منکر' ، تُجھ سے تیرا کاروں  
،اپنی دُھن کا بوجھ لیکر ، تنہا تو رہ جاےگا 
اِنکشاف رازِ ہستی ، کس کو تو جھلکایگا ٠ 
،کیوں گریزاں ہے جہاں ، خود اپنی ہی تکمیل سے  
،کیوں جُھلس جاتی ہے دُنیا ، سچ کی اک کِندیل سے  
،نو اذان کا سِلسِلہ ، کیوں لیتا ہے مدّ ت طویل  
سو سفر میں رکھ کے ، کیوں آتا ہے اگلا سنگ میل ٠ 
،ذہن کیسے ہم سفر ہوں ، ارتقائی چال کے  
،مضطرب فطرت کو، ہر لمحے ہیں سو سو سال کے  
،اِنتظارِ وقت بن ، وہ دِن یقیناً آ ے گا  
مذہبوں کے اس جُنوں سے ، آدمی شرماِگا ٠ 

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