Thursday, September 13, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 58 पैग़ाम ए नाहक़


58

पैग़ाम ए नाहक़ 

कैसी सदा है दुन्या ये ना पाएदार है,
फ़ानी1 तो हम सभी हैं, मगर ज़िंदगी के बाद,
फ़रमान ए बुज़दिली है कि मरने से पहले मर.

इंसान में अजीब ये, मरने का खौ़फ़ है,
वरना क़ज़ा2 ही उम्र ज़दा3 की नजात है,
पचती नहीं किसी को, ये घुट्टी ज़वाल4 की.

किस कद्र फ़िक्र ए ख़ाम5 है, मरने का खौफ़ ये,
जब कि बहुत ही साफ़ है, तरतीब ए ज़िन्दगी6,
फलना शजर7 के बस में है, झरना है बेबसी.

यह उम्र चाहती है, उरूज8 ओ ज़वाल को,
इंसान चाहता है, मुसलसल हयात हो, 
हिस्से में इसके एक बड़ी कायनात हो.

1समाप्ति 2 मौत 3 बुढ़ापा 4 पतन 5 अपरिपक्व सोच 6 सिलसिलेवार 7 ब्रिक्ष 8 उत्थान 

پیغام ناحق 

،کیسی صدا ہے ؟ دنیا یہ ناپائیدار ہے 
،فانی تو ہم سبھی ہیں ، مگر زندگی کے بعد
،فرمان بز دلی ہے کہ، مرنے سے پہلے مر 

،انسان میں عجیب یہ مرنے کا خوف ہے 
،ورنہ قضا ہی عمر زدہ کی نجات ہے 
.پچتی نہیں کسی سے گھٹتی زوال کی  

،کس قدر خوف خام ہے ، مرنے کا خوف یہ 
.جب کہ بہت ہی صاف ہے، ترتیب زندگی 
.پھلنا شجر کے بس میں ہے ، جھڑنا ہے بے بسی 

،یہ امر چاہتی ہے عروج و زوال کو 
،انسان چاہتا ہے ، مسلسل حیات ہو 
.حصّے میں اس کے ایک بڑی کائنات ہو  


No comments:

Post a Comment