Saturday, January 12, 2019

जुंबिशें - - - दोहे 37-39


36

कित जाऊं किस से मिलूँ, नगर-नगर सुनसान,
हिन्दू-मुस्लिम लाख हैं, एक नहीं इंसान.
کت جوں کس سے ملوں ، نگر نگر سنسان 
ہندو مسلم لاکھ ہیں ، ایک نہیں انسان ٠
*
38

कृषक! राजा तुम बनो, श्रमिक बने वज़ीर,
शाषक जाने भाइयो, बहु संख्यक की पीर.

کرشک تم راجہ بنو ، شرامک بنے وزیر 
شاشک جانے بھائیو ، بہو سنکھیک کی پیر ٠
*

39

सन्यासी सूफी बने, तो माटी पाथर खाए,
दूजी पीस पिसान को, काहे मांगन जाए.

سنیاسی صوفی بنے ، تو ماٹی پاتھر کھاۓ 
دوجی پیس پسان کو ، کاہے ماگن جاۓ ٠

1 comment:

  1. जबह करे जुलूम करे बनता फिरे इंसान |

    ख़ौफ़ ख़ावत ता संगत भागे दूर मसान || ७ ||
    भावार्थ : - जो जीवों पर क्रूरता पूर्ण व्यवहार कर फिर मनुष्य बना फिरता हो ऐसे भूत से सहमकर तो श्मशान भी दूर भागता है |

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