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कित जाऊं किस से मिलूँ, नगर-नगर सुनसान,
हिन्दू-मुस्लिम लाख हैं, एक नहीं इंसान.
کت جوں کس سے ملوں ، نگر نگر سنسان
ہندو مسلم لاکھ ہیں ، ایک نہیں انسان ٠
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38
कृषक! राजा तुम बनो, श्रमिक बने वज़ीर,
शाषक जाने भाइयो, बहु संख्यक की पीर.
کرشک تم راجہ بنو ، شرامک بنے وزیر
شاشک جانے بھائیو ، بہو سنکھیک کی پیر ٠
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39
सन्यासी सूफी बने, तो माटी पाथर खाए,
दूजी पीस पिसान को, काहे मांगन जाए.
سنیاسی صوفی بنے ، تو ماٹی پاتھر کھاۓ
دوجی پیس پسان کو ، کاہے ماگن جاۓ ٠
जबह करे जुलूम करे बनता फिरे इंसान |
ReplyDeleteख़ौफ़ ख़ावत ता संगत भागे दूर मसान || ७ ||
भावार्थ : - जो जीवों पर क्रूरता पूर्ण व्यवहार कर फिर मनुष्य बना फिरता हो ऐसे भूत से सहमकर तो श्मशान भी दूर भागता है |