मुस्कुराहटें
दोहा-तीहा-चौहा
दोहा
तुलसी बाबा की कथा, है धारा प्रवाह,
राम लखन के काल के, जैसे होएँ गवाह.
तीहा
हे दो मन की बालिके ! देहे पर दे ध्यान।
चलत ,फिरत,डोलत तुझे,पल पल होत थकान,
पर मुँह ढोवे न थके, तन यह ढोल समान॥
चौहा
सात नवाँ तिरसठ भया, तीन औ छ चुचलाएँ,
तीन नवाँ छत्तीस हुआ , तीन औ छ टकराएँ,
छत्तीस का यह आकड़ा , अकड़े बीच बजार,
तिरसठ की है आकडी , गलचुम्मी कर जाएँ॥
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