गज़ल
जहान ए अर्श का बन्दा है, बार ए अन्जुमन होगा,
मसाइल पेश कर देगा, नशा सारा हिरन होगा.
मुझे दो गज़ ज़मीन दे दे अगर शमशान में अपने,
मज़ार ए यार पे अर्थी जले तेरी, मिलन होगा.
मिले हैं पेट पीठों से, तलाशी इनकी भी लेना,
कहीं कुछ अन्न मिल जाए, तो बाक़ी है हवन होगा.
वो जिस दिन से ग़लाज़त साफ़ करना बंद कर देगा,
कोई सय्यद न होगा, और न कोई बरहमन होगा.
अपीलें सेक्स करता हो, तो ऐसा हुस्न है बरतर,
अजब मेयार लेके हुस्न का, यह बांक पन होगा.
फिरी के, गिफ्ट के, और मुफ़्त के, हमराह हैं सौदे,
खरीदो मौत गर 'मुंकिर' तो तोहफ़े में कफ़न होगा.
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ए ख़ालिक़ तेरी ख़लक़ से जब ये रूह आजाद होगी..,
ReplyDeleteरहे-रफ़्तगी में ख़ामा मिरी खतकशी का फ़न होगा..,
ख़ालिक़ = ब्रह्मा
ख़लक़ = सृष्टि
ख़ामा = लिखनी
खतकशी = अवरेख
रहे-रफ़्तगी = प्रयाण