नज़्म
बड़ा सलाम
जिंदगी इतनी कीमती भी नहीं,
यार कि, जितना तुम समझते हो।
यह रवायत1 के नज़्र होती है,
आधी जगती है, आधी सोती है।
तन का ढकना, है पेट का भरना,
धर्म ओ मज़हब की घास को चरना।
यह कभी क़र्ब२ से गुज़रती है,
कभी काटे नहीं, ये कटती है।
इसका अपना कोई निशाना हो,
ज़िन्दगी जश्न हो, तराना हो।
इसको मौके पे, काम आने दो,
जंगे-हक़३ पर, महाज़४ पाने दो।
इसका अंजाम, बालातर५ आए,
आख़िरी वक़्त में निखर जाए।
सच एलान कर के मर जाओ,
आख़िरी वक़्त में संवर जाओ।
मियां 'मुंकिर'! ज़रा सा काम करो,
ज़िंदगी को बड़ा सलाम करो।
१-कही सुनी बातें २-पीडा ३-सच्ची लडाई ४-मोर्चा ५-श्रेष्ट
ज़िंदगी वो नहीं जो हर्फ़े-सैह में बयाँ होती हो..,
ReplyDeleteसुब्हे-दम पैदा हो के शबे-नीम जवाँ होती हो.....
हर्फ़े-सैह = तीन अक्षर