Tuesday, June 3, 2014

Jubishn 296



नज़्म 

जवाब बराय जवाब 

गौरव का सफ़र अब वह, इस उम्र में कर गुज़रा,
अपना तो कबीला ही, मसरूफ़ ए सफ़र गुज़रा।

न देश कोई इसका, न वंश कोई इसका,
अपना ही बना डाला, हर शू को जिधर गुज़रा।

परहेज़ नहीं करता, बेवाओं यतीमों से, 
मज़लूम पनाहों का, मंज़ूर नज़र गुज़रा।

मस्जिद में जगह दे दी,दलितों को अछूतों को,
पैदाइशी पापी के, विश्वास से दर गुज़रा।

ये राह ए सफ़र इसकी, सदियों की पुरानी है,
तक़लीद में उसके, जो लेके नए पर गुज़रा।

इंसान बना , ख़ुद बन, हिन्दू  बना न मुस्लिम,
इक्कीसवीं सदी है, दसवीं में किधर गुज़रा।

1 comment:

  1. दरख़्त की जुज़ बंद से इक बर्क़ आजाद हुवा..,
    लवाजम कशी किए फिर कोई लश्कर गुज़रा.....?

    जुज़ बंद = बस्ता बंद
    लवाजम कशी = जरूरी सामान

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