नज़्म
मौसम का चितेरा
बाहर निकल के देखो, मौसम का रंग क्या है ?
तूफ़ान थम चुका है ? आसार ए जिंदगी है ?
छूकर बताओ मुझको , कुछ नाम हुई ज़मीं क्या ?
फ़सलों के चरिन्दे वह, क्या दूर जा चुके हैं ?
बीजों के चोर चूहे, क्या कर गए हैं रुखसत ?
बेदार हो चुके हैं , क्या लोग इस ज़मीं के ?
इंसानियत की फसलें, क्या रोपी जा सकेंगी ?
पौदों को सर पे रख्खे, रख्खे मैं थक गया हूँ।
मुरझा न जाएं खुशियाँ, मैं इनको रोप डालूँ।
आसेबज़दा परिंदों को आशियाने की जरुरत है ..,
ReplyDeleteसाफ़री को भी सुकूनती सायबाने की जरुरत है..,
ऐ चमनबंद तिरी तदबीर से आबाद हो ये चमन..,
गुलों को रंग बुलबुल को आबोदाने की जरूरत है......
आसेबज़दा = कष्टी
साफ़री = यात्री
सुकूनती = विश्रामदायक