Tuesday, July 1, 2014

Junbishen 308

रूबाइयाँ 

बेचैन सा रहता भरी महफ़िल में,
है कौन छिपा बैठा, तड़पते दिल में,
रहती हैं ये आखें, मतलाशी किसकी ?
मंजिल है कहाँ, कौन निहाँ मंजिल में.


धरती के हैं, धरती की रज़ा रखते हैं,
हक धरती का हर रोज़ अदा करते हैं,
वह चाहने वाले हैं फ़लक के 'मुंकिर',
ऊपर की दुआओं में लगे रहते हैं.


तस्बीह, तसवीर, मसाजिद, तोगरा,
एक्सपोर्ट करे चीन, खरीदे मक्का,
सीने से लगाए हैं इन्हें हाजी जी,
बेदीनों के तिकड़म का यह दीनी तुक्का.

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