Tuesday, January 28, 2014

Junbishen 138

दोहे


घृणा मानव से करे, करे ईश से प्यार,
जैसे छत सुददृढ़ करै, खोद खोद दीवार।


कित जाऊं किस से मिलूँ, नगर-नगर सुनसान,
हिन्दू-मुस्लिम लाख हैं, एक नहीं इंसान।


जिन के पंडित मोलवी, घृणा पाठ पढाएं,
दीन धरम को छोड़ कर, वह मानवता अपनाएं।


कृषक! राजा तुम बनो, श्रमिक बने वज़ीर,
शाषक जाने भाइयो, बहु संख्यक की पीर।


सन्यासी सूफी बने, तो माटी पाथर खाए,
दूजी पीस पिसान को, काहे मांगन जाए।

2 comments:

  1. जिनके पंडित मौलवी, घृणा पाठ पढ़ाएँ ।
    उनको कानो खीँच के, घर भीतर बैठाएँ ॥

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  2. भाव लगे कुकरमन मैं, भगती लाहन लाहि ।
    तिनकी सेवा पूरनन , लगी सुवारथ माहि ।११९८।

    भावार्थ : -- जिनके भाव कुकर्मों में लगे हैं एवं भक्ति लब्ध-लाभ अर्जित करने में लगे हैं । उनकी सेवा सुश्रुता स्वार्थ पूर्ण करने में ही लगी रहती है ॥

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