भाँवर होई गयो भँवर भँवर कै.., चारीं धाम होई आयो.., माँगा बाँटा और परोस्सा.., ज्ञान सभा मैं गायो.., जोड़ा गांठा कौड़ी धेल्ला.., पण्डे दै बाहर बिठायो.., देव रहा मन तुम्हरे बैठा.., ओह पर ना पतियायो.....
हिन्दू के लिए मैं इक मुस्लिम ही हूँ आख़िर,
मुस्लिम ये समझते हैं गुमराह है काफिर,
इनसान भी होते हैं कुछ लोग जहाँ में,
गफलत में हैं ये दोनों ,समझाएगा
'मुंकिर'।
भाँवर होई गयो भँवर भँवर कै..,
ReplyDeleteचारीं धाम होई आयो..,
माँगा बाँटा और परोस्सा..,
ज्ञान सभा मैं गायो..,
जोड़ा गांठा कौड़ी धेल्ला..,
पण्डे दै बाहर बिठायो..,
देव रहा मन तुम्हरे बैठा..,
ओह पर ना पतियायो.....