मुस्कुराहटें
मरसिया
बाद मुद्दत के सही , आई क़ज़ा अच्छा हुवा .
थक गया था , चार कान्धों पर लदा अच्छा हुवा .
लुट गया बुड्ढे का कल माल ओ मतअ अच्छा हुवा .
था दुकान ओ घर पे ग़ालिब , मर गया अच्छा हुवा .
बेबसी के बार ए ज़हमत से तुम्हें छुट्टी मिली ,
था निज़ाई वक़्त , तुमने ली ख़ुला अच्छा हुवा .
रो रहे हो इस लिए , दुन्या का ये दस्तूर है ,
दिल में कहते हो मरा खूसट , चलो अच्छा हुवा .
मैं भटकती रूह हूँ ,उसके सितम से था मरा ,
आज निपटूंगा , कि मह्शर में मिला अच्छा हुवा .
देख कर मय्यत को क्यों, मिलती है राहत क़ल्ब को ,
लगता है मुंकिर कि थोडा सा, मरा अच्छा हुवा .
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सन्नाटे पसरी रिहायसी, श्मशानों में है इक शोर ..,
ReplyDeleteभूँकता था रोज़ो मिरे दर, ला हो बिला अच्छा हुवा.....