ग़ज़ल
उसकी टेढी नज़र है,
सिर फिरी राह पर है।
तेरा पत्थर का दिल है,
मेरा शीशे का घर है।
मसख़रा आ गया है,
आबरू दाँव पर है।
हो गए हैं वो राज़ी ,
साथ में इक मगर है।
इल्मे-नव शेख़ समझें?
नए मानो का डर है।
निभावो या की जाओ ,
तुम्हीं पर मुनहसर है।
खेतियाँ बस कमल की,
बाग़ बानी में शर है।
दुश्मनों में घुसे वह,
उन में दिल है, जिगर है।
पुर बहाराँ में खुशरंग गुल खिल के कह रहा..,
ReplyDeleteजहां सुबहे सादिक हुई वहीँ उम्मीदे-बर है.....