Sunday, January 26, 2014

Junbishen 136


रूबाइयाँ 

चेहरे पे क़र्ब है, लिए दिल में यास,
कैसे तुझे यह ज़िन्दगी, आएगी रास,
मुर्दा है, गया माजी, मुस्तक़बिल है क़यास,
है हाल ग़नीमत ये, भला क्यों है उदास.


हर सुब्ह को आकर ये रुला देता है, 
मज़्मूम बलाओं का पता देता है,
बेहतर है कि बेखबर रहें "मुनकिर",
अख़बार दिल ओ जान सुखा देता है.


तबअन हूँ मै आज़ाद नहीं क़ैद ओ बंद,
हैं शोखी ओ संजीदगी, दोनों ही पसंद,
दिल का मेरे, दर दोनों तरफ खुलता है,
है शर्त कि दस्तक का हो मेयार बुलंद. 


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