क़तआत
बेचारे
तोतों की ज़िन्दगी थी , शिकरों में कट गई ,
अनदेखी आक़बत के फ़िकरों में कट गई ,
जो अहले होश थे , वो सभी लेके उड़ गए ,
इनकी हयात हयात दीन के ज़िक्रों में कट गई .
काफ़
यह काफ़ सवालों का, उठाए है पिटारा,
कब?कौन?कहाँ?कैसे?कितने? हैं गवारा,
आ जाए सवालों में अगर क्यों?या मगर क्यों?
चढ़ जाता है सुन कर इसे ठहरा हुवा पारा।
जल परी
शाम आई भर नहीं , ऊबने लगता है दिल ,
जाने क्यों गुम सी ख़बर , ढूँढने लगता है दिल ,
याद आती है उसे इक खूबसूरत जल परी ,
जाके पैमाने में फिर , डूबने लगता है दिल .
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