Tuesday, June 19, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 92 हक़ की बातें ही नहीं करते हैं,


92

हक़ की बातें ही नहीं करते हैं,
हक़ तलफ़ हों, तो बहुत डरते हैं . 

व.ज्न को ख़त्म किया दौलत ने,
पाँव धरती पे नहीं धरते हैं.

घर की दीवारें दरक जाएंगी,
बात धीमे से किया करते हैं.

सजती धजती हैं जतन से परियाँ,
ये है लाज़िम कि जवाँ मरते हैं.

जाम भरते हैं ख़ुद अपने सर में,
सर निज़ामों से मेरा भरते हैं.

एक मुंकिर के सिवा बाक़ी सब,
तेरे जन्नत की घास चरते हैं.

निजामों+उसूलों 


 ،حق کی باتیں ہی نہیں کرتے ہیں
حق تلف گر ہوں ، بہت ڈرتے ہیں٠  

،وزن کو ختم کیا دولت نے  
پانوں دھرتی پہ نہیں دھرتے ہیں٠  

،گھر کی دیواریں درک جاینگی
دھیمے دھیمے وہ بات کرتے ہیں٠  

،سجتی دھجتی ہیں جَتن سے پریاں
یہ ہے لازم کہ جواں مرتے ہیں٠  

،جام بھرتے ہیں خود اپنے سر میں
سر میں میرے نظام بھرتے ہیں٠  

،ایک منکر کے سوا باقی سب
تیری جنّت کی گھاس چرتے ہیں٠  

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