Monday, June 11, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 84



84

आप वअदों की हरारत को, कहाँ जानते हैं.
हम जो रखते हैं, वह पत्थर की ज़ुबाँ जानते हैं.

पुरसाँ हालों को, बताते हुए मेरी हालत,
मुस्कुराते हैं, मेरा दर्द ए निहाँ जानते हैं.

क़ौम को थोडी ज़रुरत है, मसीहाई की,
आप तो बस कि फ़न ए तीर व् कमाँ जानते हैं.

नंगे सर, नंगे बदन, उनको चले आने दो,
वोह अभी जीने के, आदाब कहाँ जानते हैं.

नहीं मअलूम किसी को, कि कहाँ है लादेन,
सब को मअलूम है कि अल्लाह मियाँ जानते हैं.

ना तवानी की अज़ीयत में पड़े हैं 'मुंकिर',
है बहारों का ये अंजाम, खिज़ां जानते हैं.

*मसीहाई=मसीहाई*न तवानी=दुर्बलता* अज़ीयत=कष्ट

،آپ وعدوں کی حَرارت کو کہاں جانتے ہیں
ہم جو رکھتے ہیں، وہ پتّھر کی زبان جانتے ہیں٠ 

،پُرساں حالوں کو بتاتے ہوئے، میری حالت 
مُسکراتے ہیں، مرا دردِ نہاں جانتے ہیں٠ 

،قوم کو تھوڑی، ضرورت ہے مسیحائی کی 
آپ تو بس کہ فنِ تیر و کماں، جانتے ہیں٠ 

،ننگے سر، ننگے بدن، اُنکو چلے آنے دو
وہ ابھی جینے کے آداب، کہاں جانتے ہیں٠

،نہیں معلوم کسی کو، کہ کہاں ہے لادین 
سب کو معلوم ہے کہ الله میاں، جانتے ہیں٠

،ناتوانی کی اذیت میں، پڑے ہیں منکر 
ہے بہاروں کا یہ انجامِ خزاں، جانتے ہیں٠ 

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