Friday, June 8, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 81 हर शब की क़ब्रगाह से, उठ कर जिया करो


81

हर शब की क़ब्रगाह से, उठ कर जिया करो,
दिन भर की ज़िन्दगी में, नई मय पिया करो.

उस भटकी आत्मा से, चलो कुछ पता करो,
इस बार आइना में बसे, इल्तेजा करो.

दिल पर बने हैं बोझ, दो मेहमाँ लड़े हुए,
लालच के संग क़िनाअत1? इक को दफ़ा करो.

तुम को नजात दे दें, शबो-रोज़ के ये दुःख,
ख़ुद से ज़रा सा दूर, जो फ़ाज़िल ग़िज़ा करो.

दरवाज़ा खटखटाओ, है गर्क़ ए मुराक़्बा2,
आई नई सदी है, उसे इत्तेला करो.

'मुंकिर' को क़त्ल कर दो, है फ़रमान ए किब्रिया3 ,
आओ कि हक़ शिनास को, मिल कर ज़िबह करो.

१-संतोष २-तपस्या रत ३-ईश्वरीय आज्ञा

،ہر شب کی قبر گاہ سے، اُٹھ کر جیا کرو 
دِن بھر کی زندگی میں، نئی مئے پیا کرو٠ 

،اُس بھٹکی آتما سے چلو کچھ پتہ کرو 
اِس بار آئینہ میں بسے، اِلتجا کرو٠ 

،دل پر بنے ہیں بوجھ، دو مہماں لڑے ہوے
لالچ بھی ہے، نجات بھی، اک کو دفع کرو٠

،تم کو نجات دینگے، شب و روز کے یہ دُکھ
خود سے ذرہ سا دور، جو فاضِل غذا کرو٠

،دروازہ کھٹ کھٹا ؤ، ہے غرقِ مراقبہ 
آئ نئی صدی ہے، اُسے اطلا ع کرو. 

،منکر کو قتل کر دو، ہے فرمانِ کبریا 
آؤ کہ حق شناش کو، مل کرذبح کرو٠

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