गज़ल
ग़फ़लतों की इजाज़त नहीं है,
ये तो सच्ची इबादत नहीं है.
कडुई सच्चाइयाँ हैं सुनाऊं?
मीठे झूटों की आदत नहीं है.
चित तुम्हारी है, पट भी तुम्हारी,
भाग्य लिक्खे में गैरत नहीं है.
छोड़ कर बाल बच्चों को बैठे,
सन्त जी ये शराफ़त नहीं है.
दुःख न पहुँचाओ, तुम हर किसी को,
सुख जो देने की, वोसअत नहीं है.
रोग अपना ज़ियाबैतिशी है,
अब कोई शै भी, नेमत नहीं है.
हों वो पत्थर के या फिर हवा के,
इन बुतूं में, हक़ीक़त नहीं है.
ये हैं 'मुंकिर'में फूटी निदाएँ,
आसमानों की हुज्जत नहीं है.
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*वोसअत=क्षम्ता *ज़ियाबैतिशी=डायबिटीज़
मर्ज़ तिरा ज़ियाबर्तानिशी है ?
ReplyDeleteदो गज़ की तिरी हैसीयत नहीँ है.....