Saturday, April 26, 2014

Junbishen 279



मुस्कुराहटें 

शेखू ----

\हर सच पे ही लाहौल1 पढ़ा करता है शेखू ,
हर झूट दलीलों से गढा करता है शेखू।

चट करता है बेवाओं , यतीमों की अमानत,
कुफ़्फ़ारह2 दुआओं से, अदा करता है शेखू ।

देता है सबक सब को, क़िनाअत 3की सब्र की ।
ख़ुद मुर्गे-मुसल्लम पे, चढा करता है शेखू ।

दो बीवी निंभाता है, शरीअत4 के तहत वह,
दोनों को फ़क़त निस्फ़,5 अता करता है शेखू ।

हर शाम मुरीदों को चराता है इल्मे-ताक,
हर सुब्ह इल्मे-खाक पढ़ा करता है शेखू ।

बख्शेगी इसे दुन्या, न बख्शेगा खुदा ही ,
'मुंकिर' ये खताओं पे खता करता है शेखू ।

१-धिक्कार २- प्रायश्चित ३-संतोष ४-धर्म-विधान ५-आधा
*

2 comments:

  1. शाहों ने ही सिपर शाम पे स्याहकारी लिखीं..,
    सितारों को खलाओं में जमा करता है शेखू.....

    सिपर शाम = ढलती शाम

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  2. इत्ती महंगाई में शेखू की दो बीबियाँ ? हाय अल्ला ! औरों ने तो एक को भी 'छोड़' 'रखा' है.....

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