Tuesday, April 22, 2014

Junbishen 277



हिंदी गज़ल 
जीवन आपाधापी है, 
लोभी है ये पापी है .

 आपे से बाहर है वह, 
कहते हैं परतापी है. 

पहले जग को जीता था ,
बाद में तुर्बत नापी है. 

अपने तन का भक्षि है, 
कितना वह संतापी है.

हिन्दू मुस्लिम ईसाई ,
जात बिरादर नापी है. 

धर्मों का विष त्यागा है, 
अपनी मन मदिरा पी है. 

दिल मुंकिर का कैसा है ?
हक की फोटो कापी है. 

1 comment:

  1. ऐ ! पी पी की लिपि, जब लिखने को कुछ नहीं होता, तो पन्ने गंदे काहे करते हो.....

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