हिंदी गज़ल
जीवन आपाधापी है,
लोभी है ये पापी है .
आपे से बाहर है वह,
कहते हैं परतापी है.
पहले जग को जीता था ,
बाद में तुर्बत नापी है.
अपने तन का भक्षि है,
कितना वह संतापी है.
हिन्दू मुस्लिम ईसाई ,
जात बिरादर नापी है.
धर्मों का विष त्यागा है,
अपनी मन मदिरा पी है.
दिल मुंकिर का कैसा है ?
हक की फोटो कापी है.
ऐ ! पी पी की लिपि, जब लिखने को कुछ नहीं होता, तो पन्ने गंदे काहे करते हो.....
ReplyDelete