हिंदी गज़ल
स्वार्थ की भाषा ड्योढा बांचे, लालच पढ़े सवय्या,
रिश्तों में जब गांठ पड़े, तो कोई बहेन न भय्या।
घूर घूर के जुरुवा देखे, टुकुर टुकुर ऊ मय्या,
दो फाडों में चीरे हम को, घर की ताता थय्या।
दूध पूत से छुट्टी पाइस, भूखी खड़ी है गय्या,
इस के दुःख को कोई न देखे, देखै खड़ा क़सय्या।
गुरू गोविन्द की पुडिया बेचे, कबर कमाए रुपय्या,
पाखंड और कलाकारी की, ईश चलाए नय्या।
गिरजा और गुरुद्वारे बोलें, ज़ोर लगा के हय्या!
मन्दिर, मस्जिद इक दूजे की, काटे हैं कंकय्या।
किसके लागूं पाँव खड़े हैं गाड, खुदा और दय्या,
'मुंकिर' को ये कोई न भाएँ, सब को रमै रमय्या
हे री बँसरी अधर आधारे मधुबन धेनु चरैय्या..,
ReplyDeleteबैठो जमुना किनारे मोको, लागे प्यारा कन्हैय्या.....
गोरी गोरी म्हारी राधिका, साँवरो कन्हैय्या..,
ReplyDeleteयह चितवन की चोरनी वो, माखन का चोरय्या..,
छापन कलि को घाघरो घिर मटकावै कलैय्याँ..,
चारु चरन मैं झाँझरी घारे, नाचे ता ता थैय्या.....