Tuesday, April 8, 2014

Junbishen 171



हिंदी गज़ल 
ला इल्मी का पाठ पढाएँ, अन पढ़ मुल्ला योगी,
दुःख दर्दों की दवा बताएँ, ख़ुद में बैठे रोगी.

तन्त्र मन्त्र की दुन्या झूठी, बकता भविश्य अयोगी,
अपने आप में चिंतन मंथन, सब को है उपयोगी.

आँखें खोलें, निंद्रा तोडें, नेता के सहयोगी,
राम राज के सपन दिखाएँ, सत्ता के यह भोगी.

बस ट्रकों में भर भर के, ये भेड़ बकरियां आईं,
ज़िदाबाद का शोर मचाती, नेता के सहयोगी.

पूतों फलती, दूध नहाती, रनिवास में रानी,
अँधा रजा मुकुट संभाले, मारे मौज नियोगी.

"मुकिर' को दो देश निकला, चाहे सूली फांसी,
दामे, दरमे, क़दमे, सुखने, चर्चा उसकी होगी.
दामे,दरमे,क़दमे,सुखने=हर अवसर पर

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